Jaane Kahaa ??? The Revolution भाग 23
अपडेट-23
कोलेज मे साल मे दो बार स्वामी रामानंद की एक दिन की शिबिर आयोजीत होती थी। इस साल भी होनी थी। दोनो कोलेज के प्रिन्सीपाल ने कडी मेहनत कराइ और कोलेज के सभाग्रुह मे आयोजित होना था। अभी 7 दिनो की देरी थी। सब जुनियर विध्यार्थिओ की एक बेठक कराइ गइ और बताया गया की स्वामी रामानंद के बारे मे अपने सीनियर विध्यार्थी ओ से परिचय लेकर हो सके तो उन के बारे मे पुरे नागपुर मे ही नही बल्की जहा तक पहुच सके इस शिबिर के बारे मे प्रचार करना है। नि:शुल्क शिबिर का लाभ जितने भी लोग तक पहुचे वो एक तरह का गुरुकार्य होगा और दुसरी ओर कल्याण के मार्ग पर सब को अग्रेसर कर सकते है।
प्रचारकार्य कम्पल्सरी नही था, जैसी जिस की श्रध्धा वैसे इस कार्य मे जुड के कोइ भी छोटा से छोटा भी योगदान दे सकता है। जय को इस विषय मे कुछ दिलचश्पी तो थी ही इसिलिये उस ने एक बार देखने का मन कर लिया। अब सवाल ये था की उस की टोली का कोइ भी सदस्य इस बात के लिये तैयार नही था।ये वो ग्रुप था जिसे धर्म के नाम से ही नफरत थी। वो तो बस सिर्फ आजादी चाहते थे। साधु संत से तो बहुत दुर तक कोइ इंटरेस्ट नही था इन सब का। खास कर के साजन के पिताजी तो इंटरनेशनल लेवल पर इस ट्रुस्ट के ट्रस्टी थे और निशी के पिताजी भी साजन के पिताजी को सपोर्ट करते थे इसिलिये इन दोनो पर तो संस्था का भी दबाव था। अब ये दोनो उपर से दिखावा जरुर करते थे की वे दोनो इंटरेस्ट ले रहे है लेकिन अन्दर उस के खास दोस्तो को ही पता था की ये दोनो पिछे से गालीया निकाल रहे थे। जब की दोनो के पिताजी का मुख्य उद्देश्य ही यही था की दोनो का दाखिला यहा करवाया जाये तो इस मिशन मे दोनो जुड जाये और जिस स्वामीजी को युवा वर्ग ज्यादा पसन्द करता हो उस से ये दोनो कैसे बच सकते थे। क्युकी स्वामी रामानंद का सकारात्मक सोचने और मिशन का सुत्र भी यही था ‘आज़ादी से लेकर समाधी तक’।
जय ने साजन और निशी से बहुत बहस की कम से कम एक बार तो वे आये, जुडे और अटेंड करे ता की जिन्दगी मे कुछ सुधार, कुछ बदलाव आ सके। ये दोनो नही माने। अब जय ने दोस्ती का वास्ता दिया तो सिर्फ एक दिन के लिये अटेन्ड करना था इसिलिये दोनो तैयार हुवे। कोलेज के विध्यार्थीओ ने जान लगाकर पुरे नागपुर मे जोर शोर से प्रचार किया। नागपुर समाधी ट्रस्ट का मुख्य मथक था तो समाधी ट्रस्ट के साधको ने भी जमकर प्रचार किया था। बडे बडे होर्डिंग्स, पोस्टर्स, समाचारपत्रो मे इस्तेहार, घर घर तक पत्रिकाये पहुचाइ गइ। जाहेर जगहो जैसे बस स्टेंड, रेल्वे स्टेशन, दिवारो पर पोस्टर्स चिपकाये गये। रोज रोज मीटिंग्स होने लगी। वैसे पढाइ की वजह से विध्यार्थिओ को बहुत कम काम किया जाता था। लेकिन जय ने कुछ हद तक हिस्सा भी लिया जब की बाकी दोस्तो मे से कोइ भी प्रचार मे जुडा नही सिर्फ शिबिर अटेंड करने के लिये ही राजी हुवे थे। और शिबिर का दिन आ गया।
शाम को 7 बजे सिबिर का समय निर्धारीत हुवा था। कोलेज का रंगभुवन को फुलो से सजाया गया था। स्वामी रामानंद आंतरराष्ट्रिय स्तर के गुरु थे। विश्व के बाल, बुजुर्ग और युवानो ने इस मार्ग को अपनाया था। शाम को 6 बजे और कोलेज के बाहर तीन ए.सी, मारुति ओम्नी आकर खडी हो गइ। कुल 15 साधक नीचे उतरे जिन्होने सेफ्रन कलर का कुर्ता और सफेद कलर की ढीली पेंट पहनी हुइ थी। कुर्ते की दायी और छाती के मध्य मे गोलाकर लेबल था ‘समाधि ट्रस्ट, इंडिया। ये लोगो था, सिम्बोल था समाधि ट्रस्ट का। सब साधक ने आकर प्रणाम किया और उन मे से एक ने माइक सम्भाला और उद्घोषना शुरु की।
“जय गुरुदेव, नमस्कार। गुरुजी अभी कुछ ही क्षणो मे पहुचने वाले है और तब तक आप सब के लिये कुछ आवश्यक सुचनाये है ध्यान से सुनियेगा। सब से पहले आप सर्वो से बिनती है क्रिपया मौन का पालन करे ता की आप गुरुदेव की अम्रितवाणी का अम्रुतपान सही मायने मे कर सके, दुसरा कार्यक्रम को बीच मे बिलकुल ना छोडे, पुरा सुने ता की पुरा ग्रहण कर सकते है। यहा कोइ जाती, ज्ञाति, वेश, रंग, रुप का भेदभाव नही है, कोइ भी यहा आ सकता है और प्रसाद ग्रहण कर सकता है। तीसरा ये कार्यक्रम बिल्कुल नि:शुल्क है इस के लिये कीसी भी प्रकार की भेट या पैसे देने की कोइ आवश्यकता नही है। कार्यक्रम के दौरान अगर आप को नीन्द आये तो समजिये की आप की अवस्था और भी अच्छी है, तो इस दुविधा मे न रहियेगा की आप ने कुछ खो दिया। वास्तव मे गहरी नीन्द मे आप का शरीर ज्ञान रुपी प्रसाद पाने के लिये और भी अच्छी स्थिति पा लेता है, तो क्रुपया मन के भीतर कीसी भी प्रकार का नकारात्मक विचार को ना आने दे क्युकी यही सर्वोत्तम और यथायोग्य स्तिथी होगी परम क्रुपालु परमात्मा स्वरुप स्वामी रामानंद जी के वाणी स्वरुप प्रसाद पाने का। एक बार गुरुदेव यहा पधारे बाद मे कोइ भी खडा होकर इस सभाग्रुह के बाहर ना जाये इस नियम को सख्ती से पालन करे। अब एक धुन बजने जा रही है बस उसे सुने और तैयार होंगे गुरुदेव की अम्रितवाणी के लिये, धन्यवाद।
और एक ओडियो केसेट चलाया गया। स्पीकर से बासुरी के सुर निकलने लगे। ये सुर इतने प्रभावी थे की सभाग्रुह मे बैठे हुये सब मंत्रमुग्ध होकर खो गये। धीरे धीरे बासुरी के सुर के साथ सितार और जलतरंग के सुर मिलते हये और वातावरण मे पवित्रता छा गयी। कोइ आंखे बंध कर के और कोइ आंखे खोले हुये लेकिन पुरा सभाग्रुह इस बासुरी, सितार और जलतरंग के सुर मे ऐसे खो गये जैसे कोइ दुसरी दुनिया मे जा पहुचे हो।
6.43 मिनिट पर अचानक ये सुर बन्ध कर दिये गये और जय जयकार शुरु हुवा। बराबर 6.45 मिनिट पर बाहर दरवाजे पर एक वायोलेट कलर की ए.सी मारुती ज़ेन आकर खडी हुयी और पहले आये हुवे 15 साधको ने आमने सामने खडा होकर पुरा द्वार कोर्डन कर लिया। और स्वामी जी के पैर जमीन पर उतरे।
6 फीट की हाइट, सुद्रढ शरीर, चरबी का नामोनिशान शरीर पर नही था, काले लम्बे बाल, दाढी थोडी सी बढी हुइ, बडा गोल चेहरा, गुलाबी गाल, आंखे बडी बडी और बिल्कुल सम्मोहक लेकिन बिल्कुल स्थिर, कदमो मे मक्कमता छलकती हुइ। कोइ अगर उस की आंखो को देखे तो क्षण मे ही उस का हो जाये। शरीर पर गुलाबी कलर का रेशम का बना हुवा कुर्ता और नीचे ढीली रेशम की ढीली धोती गुलाबी रंग की, माथे पर कुछ नही था, लेकिन कोइ मालाये नही, हाथो मे एक एक उंगली पर रिंग्स थी। धीरे धीरे कदमो से स्वामी जी ने सभाग्रुह मे प्रवेश किया और जय जयकार अपनी चरमसीमा पर था। स्वामीजी ने स्टेज पर आकर अपने बैठक रुपी सोफे को नमस्कार किया और फिर श्रोतागण को नमस्कार किया और सोफे पर बैठ गये। दोनो तरफ एक एक माइक रखा गया था। पैरो के आसपास गुलाब के फुल की पंखडियो का ढेर था उस पर पैर जमाये फिर गुरुजी का फुल्हार से सत्कार किया गया। कोलेज के दोनो प्रिंन्सीपाल ने दो दो मिनिट तक प्रारम्भिक प्रवचन दिया और गुरुजी का शाब्दिक स्वागत किया गया। उस के बाद गुरु र ब्रह्मा..गुर विश्नो...से गुरुमंत्र का उच्चारण किया गया जिस से सम्पुर्ण सभाग्रुह एक अलौकिक वातावरण मे सम्मोहित होता चला गया। फिर स्वामीजी ने दोनो हाथ जोडकर कुछ देर आंखे बन्ध कर के प्रार्थना की।
कुछ क्षण के बाद स्वामीजी ने धीरे धीरे आंखे खोली और श्रोतागण के ओर सभाग्रुह के चारो ओर नजर घुमाइ, जैसे एक बीजली दौड उठी वैसे सब के रोंगटे खडे हो गये। अचानक वातावरण मे चन्दन की खुश्बु बीखर गइ। गुरुजी ने हाथ जोडकर सब को प्रणाम किया, सामने सब ने भी अपने सर जुकाकर दोनो हाथ से गुरुजी को प्रणाम किया। बाये हाथ से गुरुजी ने अपनी दाढी पर हाथ फिराया और दाये हाथ से बारी बारी दोनो तरफ के स्लाइडिंग माइक को अपने मुख के नजदिक ले गये। और प्रवचन, आशिर्वचन शुरु हुवा.......
“यहा उपस्थित सभी को हमारा प्रणाम” इतना बोलने के बाद स्वामीजी ने फिर से दोनो हाथ जोडकर सब को प्णाम किया। एक मेघावी आवाज उस के गले से नीकल रही थी और उस आवाज ने ऐसा जादु कर दिया की सब जैसे मोहिनी अस्त्र चला हो ऐसे स्थिर हो गये। ये माहोल शिबिर मे होना आम बात थी। स्वामीजी के आगमन से पहले और आगमन के बात वातावरण मे इतना बदलाव आ ही जाता था। स्वामी रामानंद के प्रवचन मे एक खुबी थी, वे शुरुआत हमेशा धीरे धीरे से, कुछ कुछ पल रुकते रुकते बोलते थे। और इस से श्रोताओ पर प्रभाव और भी बढ जाता था। बाद मे उस के मुख से जैसे युद्ध मे योद्धा तुट पडता है वैसे अविरत, अस्खलित वाणी नीकलती थी।
“देवीओ और सज्जनो......., ये कोइ..धार्मिक...प्रवचन...नही है...यहा कोइ ...धर्म की...चर्चा..नही है...क्युकी धर्म तो इस समाज ने...बनाये हुये...खोखले...मट्टी के...घंरोंदे है...जो कोइ भी तोड सकता है...मरोड सकता है....बिखेर सकता है...यहा हम चर्चा करेंगे मानवता की, मानव मानव के बीच कैसा सम्भन्ध आज है और कैसा होना चाहिये, हम जब भी इस प्रुथ्वी पर जन्म लेते है, समाज के बन्धन मे जुड जाते है। ये माता, ये पिता, ये भाइ, ये बहन, ये मौसी, ये मौसा, ये अंकल, ये आंटी......क्युकी ये रितीरिवाज बरसो से चले आ रहे है। हमे सिखाया जाता है बडो की रीस्पेक्ट करो, अच्छा अभ्यास करो, अच्छा शिक्षण लो, अपने धर्म, अपनी ज्ञाति, अपने समाज, अपने सुविचार, अपनी संस्क्रुती, अपने देश पे गर्व करो, प्रेम करो, उसे आगे ले जाओ और ओर आगे बढाओ।
बचपन मे एक बच्चा, जिस का मानस सबकुछ ग्रहण करने के लिये उपयुक्त होता है, उसे सब से पहले अपने माता संस्कार देती है, छोटा बच्चा, जो मा कहती है वोही मानकर पलता बडा होता है, क्युकी ज्यादातर पिता और परिवार के अन्य सदस्य कम समय निकाल पाते है बच्चो के लिये। फिर बच्चा स्कुल जाता है, जहा तरह तरह की पढाइ सिखाइ जाती है, वहा भी भाषा, धर्म, इतिहास, भुगोल, विज्ञान के नाम पर उस बच्चे के मानस पर वोही पुरानी रीतिरीवाज थौप दिये जाते है। फिरर वोही रटा रटाया ज्ञान लेकर बच्चा बडा होकर इस समाज के वास्तविक जीवन का परिचय करता है, जहा मानव मानव से लडता है, रिश्ते के नाम पर धोखाबाजी देखता है। जब वो थोड बडा होकर सच्चाइ जानता है और उस के मन पर पुरानी रटी रटाइ बाते उस से टकराती है, वोही बात उस के विनाश की और उसे खीच देती है।
एक बच्चा अच्छा पेइन्टिंग्स करता है, मान लिया जाये माता-पिता ने उसे सहयोग दिया, टीचर्स ने भी सहयोग दिया, किंतु जैसे जैसे बोर्ड के एक्ज़ाम्स आयेंगे, सत्यानाश हो जायेगा। उस बच्चे की पेइन्टिंग्स कम से कम तीन सालो के लिये छुट जाती है और उसे परमात्मा ने जो कार्य के लिये भेजा है, जिस कार्य मे वो काबिल है या दुसरे शब्दो मे कहा जाये तो जिस कार्य के लिये वो जन्मा है वो भुलकर समाज की रेस मे लग जाता है। अच्छे मार्कस ले आया तो और आगे खीचाइ होगी और मार्क्स नही आये तो मायुस होकर बैठेगा। उस वक्त ना ही तो पेरन्ट्स दिलासा देंगे और न ही समाज। अगर माता-पिता ने सम्भाल भी लिया तो भी अपने समाज की कुछ रित ही ऐसी है की आगे चलनेवालो के नाम याद रखेंगे और बाकी को भुल जायेंगे।
इतिहास साक्षी है की हम भगतसिह, चन्द्रशेखर आज़ाद, महात्मा गांधीजी जैसे कइ शहीदो को याद करते है, क्युकी ये महान विभुतिया लीडर्स थे, लेकिन क्या हम उसे कभी याद करते है जिन्होने पिछे रहकर लाठी खाइ हो, अपना जीवन कुरबान कर दिया हो ? नही। ऐसा नाम न तो इतिहास मे लिखा जायेगा और न ही हमे कोइ ऐसा नाम याद है। क्युकी ये समाज के दिये गये, समाज ने बनाये गये, इतिहास है।
एक भाषा समजनेवला, अच्छा भाषा प्रयोग करनेवाले बच्चे को हम सायंस स्ट्रीम मे ले जाते है, और एक अच्छा सायंटिस्ट बन सके उसे कम मार्क्स आने की वजह से कोमर्स स्ट्रीम मे ले जाते है और जिस बच्चे की उध्योग क्षमता अच्छी है उसे हम भाषा स्ट्रीम की और खीच देते है। फिर क्या होगा है....नौकरी के लिये भागदौड, फेमिली रीस्पोंसीबीलीटीज, कम सेलेरी मे खाना, जिवन निर्वाह और उस के उपर शादी की बेडिया थौप दी जाती है।
लेकिन ये समाज इतना नही समजता की अभी तो वास्तविक जीवन को देखकर उसे शोक्ड लगा हुवा होता है और जीवन बस जाने के नाम पर शादी कर दी जाती है। शादी भी कीस माहोल मे एक लडका एक लडकी को वस्तु समज के देखने को आता है, लडकी के घरवाले जैसे शो-रुम मे रखी गइ आकर्षित चीज वस्तुओ जैसे अपनी लडकी को सजाकर पेश करते है। खास कर के लडकियो की स्थिति और खराब होती है। फिर कही कही कुंडली मिलाना, उस मे से पौरे ढुंढना और फिर उन कमीयो का इलाज जैसे मंगल खराब है, शनि भारी है वगैरह वगैरह....लेकिन जब लडके की ओर से मना करे तो लडकी की जिन्दगी मे अन्धेरा और अगर लडकी मना करे तो सब उसे जिद्दी, अभिमानी समजते है। सबकुछ ठीक हुवा तो कम उम्र मे शादी कर दी जाती है। लडका बाहर के जमेलो से नीपट नही पाता और घर मे माता-पिता और बीवी बच्चो के बीच सेंडविच बनकर रह जाता है। आज तो स्त्रीया अपने पति को हेल्प करने के लिये खुद नौकरी कर के भी मदद कर लेती है ता की खुद स्वनिर्भर भी बन पाये और अपने ससुराल को भी सम्भालती है। और रात को अपने मरजी हो ना हो, स्वास्थ्य ठीक हो ना हो, शरीर साथ देता हो या न हो पति के आगे मजबुर बन ही जाती है। और ऐसे संसार को हमारी नजर मे प्लान किया हुवा, समज और जानबुजकर किया गया बलात्कार ही समजो। ऐसा नही है की ‘बलात्कार’ शब्द सिर्फ महिलाओ के लिये है। अगर इस माहोल मे कोइ भी जीता है, चाहे स्त्री हो या पुरुष, बच्चे हो या बुढे, नवयुवान हो या आधेड, वो मानसिक और शारिरीक तौर पे बलात्कार ही जेल रहा होता है।
इस माहोल मे जो कला कारीगीरी जैसे पेइन्टिंग्स,
संगीत, आर्ट्स, कल्चर, गाना, डान्स जो उस ने उच्च पढाइ के लिये छोडा हुवा है वो ज़िन्दगीभर के लिये छुट ही गया ना। वो कला, वो ज़िन्दगी, वो माहोल, वो मानसिक स्थिति फिर कभी भी उस के जीवन मे लौट के नही आनेवाली।
फिर वो मानसिक तौर पे और कमजोर हो जाता है या हो जाती है। जो न ही तो काम मे ध्यान दे पाता है और न ही घर ग्रहस्थी पर। फिर वो कोइ भी बुरी लत मे डुब जाता है और सोचता है की उस के नसीब मे परमात्मा ने ऐसा ही लीखा था, ठोकरे खाना निश्चित था। अरे भाइ ये ठोकरे तुने खुद लीखी है अपने नसीब मे।“ और स्वामी जी एक पल रुके।
एक गेहरी शांति स्थापित हो गइ थी सभाग्रुह मे। सन्नाटे के माहोल मे सभा मे बैठे हुवे प्रत्येक को लग रहा था की स्वामीजी के मुह से खुद अपना जीवन पट खुल रहा है। क्युकी ऐसा शायद ही कोइ होगा जो अपने माता-पिता मी मरजी के खिलाफ अपना जीवन बसर करता होगा। समाज के बागी बनकर जीता होगा। फिर से स्वामीजी की सम्मोहक अम्रितवाणी बह चली:
"हम यहा कीसी मा-बाप, शिक्षक, कीसी समाज, धर्म को दोष देने के लिये उपस्थित नही हुवे, हम आप को आप का ही प्रतिबिंब दिखाने के लिये आयना बनकर आप के सामने खडे है। इसे पहले गहराइ से समजो। समजो अगर आप ने ये सब्कुछ जेला है तो इसे बदलने की कोशिश मे जुड जाओ, हमारा मिशन ही यही है की ‘आज़ादी’। अपनी जड मान्यता को को तौड फेको और एक नयी ज़िन्दगी की नयी शुरुआत करना सीखो। हा आजादी का ये मतलब नही की अपने मा-बाप की उपेक्षा परो, अपने टीचर्स की बात न सुनो, अपने समाज के लिये बागी बन जाओ, नही बिल्कुल नही। हमारा मक्सद बिल्कुल ऐसा नही है। अपने जन्मदाता मा-बाप का पुरा खयाल रखो क्युकी यही है जिन्होने आप को इस दुनिया के दर्शन कराये है, यही वो टीचर्स है जिन्होने आप को उच्च अभ्यास सिखाया है। बस इसे अलग नजरिये से देखना शुरु करो।
हम यहा कोइ उपदेश देने के लिये भी उपस्थित नही है, वो उपदेश रुपी बलात्कार तो आप बचपन से ही जेल रहे है। किंतु हम यहा एक नयी ज़िन्दगी का प्रवेशद्वार खोल के बैठे है, यहा आओ इस ज़िन्दगी से जुड जाओ, यही सच्ची समाधी है, यही मौक्ष का सच्चा द्वार है। कुछ भी करो लेकिन वो करो जिसे अपना दिल माने, चाहे अच्छा करो या बुरा करो, कभी भी अपने आप को दोषी मत समजो। कर्म करना हमारे हाथ मे है, इस से कीसी को क्या फायदा क्या नुकसान पहुचता है, इस की परवाह करनेवाले हम होते कौन है। हा वो कर्म करो की सामनेवाला आप से खुश रहे। दुसरो को खुशी बाटो तो बाटने से हमे ही ज्यादा खुशी मिलेगी।
आप जो अच्छा करते थे, उसे याद करो, वही करो जिस मे आप को आनंद आता है। अगर आप मा-बाप हो तो अपने बच्चो को मुक्त वातावरण मे खिलने दो। अगर आप कीसी की संतान हो तो अपने माता-पिता को समजाओ की मेरी इच्छा ये है, मै ये अच्छा कर सकता हु या कर सकती हु, मुजे मुक्त करो। अगर आप शिक्षक हो तो प्रत्येक बच्चे को नजदिक से परखो और माता-पिता के साथ उस बच्चे के बारे मे चर्चा करो। तीनो साथ बैठकर काउंसेलिंग करो और एक अच्छा निष्कर्ष बाहर निकलेगा।
जो करना चाहते हो उसे मुक्त मन से आनन्द उठाकर करो, जियो और जो आनंद मे होगा वो दुगना होगा और अच्छा ही होगा। और उस के बाद जो कर दिया उस का शौक ना करो, आत्मग्लानी बिल्कुल न करो। अगर हम आत्मग्लानि करते है, हमारी व्रुध्धी, हमारी प्रगति वही थम जाती है, रुक जाती है। हम कदम मिलाना तो दुर साथ भी नही चल पाते। फिर वही दुर्दशा, फिर वही तन्हाइ, फिर वही समस्याओ के बन्धन मे बंध जाओगे।
इसिलिये हम आहवाहन करते है ऐसे नवजिन्दगी जीनेवालो का, हम दो हाथ फैलाकर खडे है ऐसी जिन्दगी जीनेवालो के लिये, हम आजाद है, हमारा हिन्दुस्तान आजाद है, फिर हम क्यु रित-रसम की बेडियो मे जकडे गये है? आइये सब आंख बंध करे और आप के जो कोइ भी परमात्मा स्वरुप भगवान, अल्लाह, जीसस है उसे प्रार्थना करते है की, हे प्राणदाता हमे खुशहाल जिन्दगी प्रदान करे ता की जिस उद्देश्य से हमारा जन्म हुवा है वो उद्देश्य सफल हो। हम जानवर की नही इंसानो की जिन्दगी जीना चाहते है, हमे आशिर्वाद प्रदान करो की हम वो खुशहाली अपनी जिन्दगी मे फिर से वापस ले आये जिसे आप ने अपनी इच्छाओ से हमे सवारा है, हम उसी दुनिया मे जीना चाहते है जहा आप खुद जीते है, हमे भी स्वर्ग चाहिये, इसे ही सच्चा मौक्ष कहते है, इसे ही सच्ची समाधि कहते है। आप सर्वो का कल्याण हो ऐसी हमारी शुभकामनाओ के साथ आप सब की जय हो।“ और गुरुजी ने अपना आशिर्वचन पर विराम दिया।
फिर से जयनाद से सभाग्रुह गुंज उठा। जयनाद के बीच वो साधक फिर खडा हुवा और माइक संभालते हुये कहा,”गुरुदेव के चरणो के कोटी कोटी प्रणाम। हम सब ने परम क्रुपालु गुरुजी की अम्रुतवाणी का पान किया, गुरुदेव चाहते है की आप मे से कोइ कुछ पुछना चाहे तो नि:संकोच पुछ सकते है।“ और तीन माइक लेकर वोलंटीयर्स साधक सभाग्रुह मे टहलने लगे। वो साधक बैठ गया, कुछ देर सभाग्रुह मे फिर से सन्नाटा छा गया। कइ लोगो के मन मे जिज्ञासा थी, लेकिन इतने बडे सभाग्रुह मे सब के सामने बोलना सब के बस मे थोडे ही होता है। संकोचवश कुछ देर कोइ बोल नही सका।
कुछ पल के बाद एक लडकी खडी हुइ और उसे वोलंटीयर्स ने माइक दिया और पहला प्रश्न पुछा गया,"प्रणाम गुरुदेव, आप जब बोल रहे थे तब मुजे लगा की जैसे मेरी ही कहानी आप बता रहे हो, शायद यहा बैठे हुवे कइ लोगो को ऐसा ही लगा होगा। मै बचपन मे अच्छा गाती थी लेकिन जैसे ही उच्च अभ्यास की बात आयी तो मेरा गाना छुट गया और मेरी गाने की यात्रा समाप्त हो गइ। क्या फिर से मै पढाइ और गाना एक साथ जोड सकती हु और अगर ऐसा हो सकता है तो वो कैसे?”
स्वामी जी ने मुस्कुराकर फिर से माइक पर जवाब दिया,"देखो क्या होता है, सब से पहले जो कोइ भी हमारा प्रवचन सुनता है, उस का मन बागी हो जाता है। क्युकी जब आप अपना आयना देखते हो तभी आप को खयाल आता है की आप कौन हो और कैसे हो? और तब उस का मन आत्मग्लानि से भर जाता है और विचार ये आने लगते है की पहले से ही मैने ये क्यु नही सोचा? लेकिन हर एक चीज का उपयुक्त समय होता है, जो चला गया है वो वापस हम नही ला सकते, और अपने हाथ न तो भुतकाल है और न भविष्य। तो फिर क्यु ना हम वर्तमान मे न रहे? आज अगर आप को गाने की इच्छा है तो गा सकती है। एक प्रयोग कर के देखो, जो कुछ आप को पढाइ के जरिये याद रखना होता है उसे गाने के साथ जोड दिजिये। जैसे गाने के बोल पर अपनी पढाइ के साथ बाते लगा दिजिये, प्रयोग कर के देखिये। जो कुछ रटने से भी याद नही रहता वो एक ही बार गुन गुनाते हुये आसनी से याद रह जायेगा। अगर को पैइंन्टर है तो तो किताबी अक्षरो को पैंटिंग के हिसाब से देख के याद करे। कोइ सायंन्स का स्टुंडेंट है और सिंगर है तो प्रयोगशाला मे गुनगुनाये, कोइ खेलकुद का मास्टर है और सायंन्स मे है तो हर प्रयोग को खेलकुद के हिसाब से ही देखे। कर के देखो, आप की ज़िन्दगी रंगीन हो जायेगी। फोर कोइ मास्टॅर की जरुरत नही है आप को पढाने की। खुद ब खुद सब कुछ समज मे आ जायेगा। याद रहता जायेगा। साथ मे आंखे बंध कर के अपने इश्वर, इष्टदेव को याद किया करो। देखो चमत्कार होगा।“
वो लडकी धन्यवाद बोल के हसकर बैठ गइ। दुसरा लडका खडा हुवा,”गुरुजी मुजे ना तो कोइ शौख है और न ही तो पढाइ मे मन लगता है ऐसा क्यु ?”
गुरुजी,"क्युकी तुम आनेवाले कल से डरते हो इसिलिये। हमने कहा ना की जो कल गुजर गया और जो कल आनेवाला है उस पर तुम्हारा कोइ कंट्रोल नही है, तुम्हारे पास सिर्फ आज है। जी लो जीतना जी भर के जी सकते हो। कल की चिंता छोडो। तुम अपने बुढे मा-बाप और ब्याह करने के लायक बहन की चिंता कर रहे हो और आज अभी पढाइ भी पुरी नही की और तुम नौकरी की चिंता कर रहे हो। जानते हो नौकरी की चिंता आज कर ने से तुम सब से ज्यादा सत्यानाश तुम्हारी पढाइ का कर रहे हो। अरे भाइ हम कह रहे है की कल की चिंता छोडो, जाओ अपने दोस्तो के साथ घुमो, फिरो, गाना गाओ, मस्ती करो, कुछ विचारो का आदान-प्रदान करो। तब ही तुम्हरी प्रगति संभव है और आज से एक काम करो, सुबह उठो और नहाकर आंखे बंध कर के अपने इष्टदेव का स्मरण कर के प्रार्थना करो की जो पवित्र और सुंदर जीवन तुने दिया है उस के बदले मे मै आप का आभार प्रकट करता हु और मेरी सारी चिंताये आप को समर्पित कर रहा हु। आज से मै मुक्त और सारी जिम्मेदारिया आप की। और फिर लग जाओ अपने कार्य मे, हम गेरेंटी दे रहे है की अच्छे नम्बरो से पास होगे और अच्छी नौकरी भी मिल जायेगी। और वैसे भी इस मार्ग मे आये हुवे हर इंसान की हर जरुरत इस माध्यम से इंसान पुरी कर ही रहे है। आप भी जुड जाओ और कोइ ना कोइ रास्ता जरुर नीकल आयेगा कल देख लेना।“
अब हिम्मत कर के जय खडा हुवा,”गुरुजी प्रणाम, मेरा दोस्त शराब बहुत पीता है, उस का कोइ इलाज है क्या?”
स्वामीजी हस पडे,"अरे वो एक बोटल पीता है तो आज से दो पीये, हम कहा कुछ छोडने को कह रहे है। जो भी है जैसा भी है बस हमारे साथ जुड जाओ। जो अच्छा है वो आप के साथ रहेगा और जिसे बुरा समजते हो वो अपने आप ही छुट जायेगा। अपने दोस्त को आप बोलो आज से ही दो बोटले शुरु करे।“
पुरे सभाग्रुह मे हसी की लहर फैल गइ और जय ने देखा चुपके से साजन उसे घुर रहा था। लेकिन जय ने दौर पकड लिया था इसिलिये और कहा,”गुरुजी वो तो ऐसा है की आप ने बोल दिया तो दो क्या वो तीन पियेगा।“
अचानक स्वामी जी ने अपना हाथ उठाया और सब को शांत कराया और आंखे बंध की और फिर गंभीर हो गये, सब उस की ओर ही देख रहे थे और गुरुजी ने आखे खोली और बोले,”बच्चे आप के दोस्त की चिंता छोडो, आप भी क्या कर रहे हो? क्रिकेट मे मास्टर हो और यहा पडे दुसरो की चिंता कर रहे हो। आप को तो और आगे जाना चाहिये। आप मिशन के साथ जुड जाओ, परमात्मा आप को वो शक्ति प्रदान करेगा की आप जो चाहोगे वो मिलेगा। और दुसरा आप जानते ही हो की आप का जन्म कुछ अलग उद्देश्य से हुवा है, फिर क्यु फालतु चिज मे अपना समय वेस्ट कर रहे हो? आगे बढो, कल सारी कायनात आप के पिछे चलनेवाली है।“
पुरा सभाग्रुह स्तब्ध हो गया। जय की टोली मे तो आश्चर्य का पार न रहा। सारे स्टुडेंट्स जो जय को नही भी पहेचानते थे सब की नजरे जय पर टीक गइ। जय भी अवाचक और शुन्य हो गया। उसे ताज्जुब ये हुवा की गुरुदेव ने उस की ये बात कहा से जान ली। फिर भी हिम्मत कर के वो आगे बोला,”गुरुदेव एक आखरी प्रश्न, आप ये सब कुछ कैसे जानते हो?”
गुरुजी,"बच्चे, हम जो देख रहे है, वही बता रहे है। हमे उपर से संकेत मिल रहे है की किस के बारे मे क्या जवाब देना है। हम बता रहे है की आप के हाथो से एक विराट मिशन घटित होनेवाला है तो ये सही ही होगा।“
और जय प्रणाम कर के बैठ गया और पिछे एक बडा सवाल उस के मन मे चल पडा था।
इस के बाद भी आधे घंटे तक प्रश्नोत्तरी हुइ लेकिन जय & कम्पनी का ध्यान अब उस मे नही था। कार्यक्रम समाप्त हुवा और जयघोष के साथ स्वामीजी की विदाइ हुइ। फिर से उस साधक ने माइक सम्भाला और कहा,”देवीओ और सज्जनो, ये कार्यक्रम यहा समाप्त होता है और अगर कोइ इस मार्ग मे जुडना चाहता है तो यही इसी नागपुर सिटी मे हमारा आश्रम है वहा आकर हम से सम्पर्क करना है। जय गुरुदेव।“ और सभाग्रुह धीरे धीरे खाली हो गया।
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देर रात को खाने के बाद मेहफिल फिर से साजन के रुम मे जमी हुइ थी। सब इकठ्ठा हुवे और सन्नाटे का माहोल था। आज अभी तक तो कीसी के हाथ मे न तो सिगरेट थी और न जाम। सब जय का वेइट कर रहे थी क्युकी सभाग्रुह खाली होते होते कइ स्टुडेंट्स जय को मिलने आये थे। जय को सब अब अहोभाव से देख रहे थे और जय कुछ ओकवर्ड फील कर रहा था। लेकिन एक आंतरराष्ट्रिय लेवल के गुरु ने सरे आम, और जहा मीडिया मौजुद थी उस के बीच जय के जीवन का सब से बडा राज खोल के रख दिया था जिस के बारे मे जय भी ज्यादा नही सोचता था। उस वक़्त जय अपने ही विचारो मे खोया हुवा था की आज माता की जो वो पुजा करता था, अपनी माता की हर बात मानता था आज उसी माता की हर एक बात सच होकर बाहर नीकल आइ थी। इसिलिये सभाग्रुह से निकलने के बाद आत्ममंथन के लिये जय कोलेज केम्पस ही नही गया था। और यहा मेहफिल मे सब उस की ही राह देख रहे थे।
और जय एक गार्डन मे बैठा बैठा सोच रहा था। अचानक उस का ध्यान घडी पर गया, रात को 10 बजे थे और वो सहसा भागा क्युकी खाना भी अब नही मिलनेवाला था। वो भागा भागा केम्पस मे वापस आया और देखा की कोइ आसपास नही है तो सीधा साजन की रुम की और गया। जैसे ही उस ने साजन के रुम मे प्रवेश किया, उस ने देखा सब की आंखो मे नशा था लेकिन ये नशा शराब का नही एक कुछ अलग ही पाने का था। जय ने कुछ पल रुक कर आखिर मे मौन तोडा,”यार क्या बात है आज सब चुप बैठे हो?”
सब ने उसे बिठाया और खाने का पुछा तो जय ने जवाब दिया की अभी खाना बाकी है और अब तो कुछ न मिलनेवाला। सब ने उसे पेट भर के नाश्ता करवाया तब तक सब मौन थे। आखिर जय ने पुछा,”यार क्या बात है? क्यु सब चुप हो?”
निशी ने पुछा,"तुजे कोइ सवाल नही उठ रहा मन मे?"
जय,”हा है तो, ये कैसे सम्भव है की एक साधु मेरी जिन्दगी के बारे मे इतना कुछ जानते है?”
उदयन,"so
why he is called saint yaar.”
जय,”नही दोस्त, मेरा मतलब वो नही कुछ और है, स्वामीजी ने ऐसा क्या चमत्कार किया है अपने जीवन मे की वो दुसरो की जिन्दगी तक जाक सकते है?”
निशी,"तु इतना क्यु सोचता है? आम खाने से मतलब है की पेड गिन ने से ?"
साजन अब तक चुप बैठा था वो निशी को बोला,”हा तु तो आम खाने से ही मतलब रखती है ना, (फिर जय की ओर चेहरा घुमाया और कहा) यार मै भी सोच रहा हु की ये कैसे सम्भव है की कोइ दुसरो की लाइफ तक जान सक्ता है। और स्वामी ने कह की जय के हाथो से एक बडा कार्य होनेवाला है, साले हमारी जिन्दगी क्या बेकार है? यार जय तु है कौन?”
जय,"मै भी अपने बारे मे कुछ नही जानता यार, हा कुछ मेरे साथ जरुर हो रहा है ये तो मै भी मेहसुस कर सकता हु, लेकिन अभी भी सबकुछ अन्धेरे मे है।“
निशी,"मै बोलु कुछ जय?"
जय ने सुचक नजरो से निशी के सामने देखा और निशी ने देखा की जय के चेहरे पर इन्कार नही है तो वो आगे बोली,”फ्रेंड्स (अब सब की नजर निशी की ओर थी) ये बात जय ने सिर्फ मुजे बताइ थी, कोइ भी इस बात को सुनता तो जय पे हसता। शायद पहले मुजे भी विश्वास नही था लेकिन आज स्वामीजी के शब्दो से कुछ कुछ सही लगता है।“
मुनिश,"अरे, तु बोल तो सही बात क्या है?"
निशी,"जय के साथ बचपन से तीन घटनाये जुडी हुइ है। पहले उस की आंखो के सामने अन्धेरा छा जाता है, फिर कोइ औरत की छाती दिखाइ देती है और फिर कोइ साधु महात्मा दीखाइ देता है। उस दिन साजन और निशा को देखकर वो बेहोश नही हुवा था, सचमुच उसे अन्धेरा छा गया था। उसे कोइ मतलब नही था साजन और निशा से। मै जय को अन्दर से जानती हु। वो सेकस की बातो से कोशो दुर है।“
साजन ने अब सिगरेट जलाइ और बोल उठा,"यही तो गलत करता है ना। स्वामीजी ने कहा है ना जिस का आनन्द आये वही करो।“
और निशा ने एक थप्पड लगाइ साजन को और बोली,"बस अपने मतलब की बात ठीक से सुन लेता है, तेरे को और कुछ सुनाइ नही दिया था क्या? अभी अभी प्रवचन सुन के आया है और बोटल बाजु मे ही पडी है। कुछ शर्म है की नही तुज मे?”
साजन उस के और पलटते हुये बोला,"यार जय, इस स्वामी के बच्चे के प्रवचन ने तो मेरा पत्ता ही काट डाला, ये भी तेरे से चिपक गइ (निशा की ओर इशारा करते हुवे) कोइ बात नही ले तु सम्भाल इसे (कहकर निशा का हाथ पकडा और जय के हाथ मे थमा दिया)।“
जय हस पडा,”नही यार मुजे तेरी कोइ महेरबानी नही चाहिये और इस आग से तो तु ही खेल सकता है।“ जय ने हसकर निशा की आंखो मे देखा।
निशा मुस्कुराकर बोली,” बेड लक यार, तु आज हा कहता तो तेरे से यही खडे खडे शादी कर लेती” निशा ने जय का हाथ चुमकर वापस रख दिया और आगे बोली,”लेकिन आज मुजे नाज है की मै तेरी दोस्त हु और वो भी तु मुजे अच्छी तरह जानता है की मै क्या कर रही हु फिर भी कभी तुने मेरा गलत इस्तेमाल नही किया और न ही तो तेरी नजरे बदली है। कोइ और होता तो उसी दिन मुज पर तुट पडता, लेकिन सचमुच मे तु कोइ अलग सा है यार।“
जय ने सब की नजरो मे अपने लिये अहोभाव देखे और बोल उठा,”यार देखो तुम लोग अपनी नजरे मत चुराओ, भले स्वामीजी ने जो कहा हो, मै वोही जय हु, मुजे कोइ बडा दरज्जा मत दो। बस ऐसे ही सिम्पल रहेने दो यारो।“
बिरजु,”जय, तु ये सपनेवाली बात पहले बता देता। क्या स्वामीजी दिखाइ देते है?”
जय,” इस मे बतानेवाली क्या बात है, कोइ भी सुनता तो मुज पर हसता इसिलिये ज्यादातर मै कीसी को बताता नही हु। इसे मै अपनी प्रोब्लेम समजु या क्या यही मेरी समज मे नही आता है। और मुजे ये स्वामीजी नही दिखाइ देते बल्की एक सफेद दाढीवाले बाबा दिखाइ देते है, मैने पहले भी उसे कही देखा हुवा है ऐसा मुजे लगता है लेकिन पहेचान नही पा रहा हु। हा जब भी वो दिखते है, सिर पर एक ठंडी लहर सी छा जाती है और मन बिल्कुल शांत हो जाता है।“
साजन ने पेग मे से एक घुट पीते हुए कहा,”ये निशी तो कहती है की तुजे कोइ स्त्री की छाती भी दिखती है तो उस का क्या?”
इस बार निशी और निशा दोनो ने साजन को खुब पीटा।
निशी,”कभी तो सिरियस रहा कर, उसे स्पष्ट नही दिखता कुछ् और वैसे भी इस का डीस्क्रिप्शन नही करना है यहा ओ.के.।“
साजन,”फिर भी कुछ पता चलता तो...”
निशी और निशा एक्साथ,”स्टोप इट साजन।“
साजन,” ओके बाबा ओके।“
जय,”एक काम करते है अगर हम सब चाहे तो हम कल स्वामीजी के आश्रम जा सकते है।“
साजन ने एक कश खीचकर कहा,”अब वहा जाकर क्या करेंगे?”
निशी,”देखे तो सही, क्या प्रव्रुत्तिया होती है आश्रम मे, यार लेक्चर इतना अच्छा है तो कुछ तो होगा स्वामीजी मे वैसे भी हम दोनो तो कभी इंटरेस्ट नही ले रहे थे। वहा जायेंगे तो अपने अपने घर भी कुछ बता सकते है।“
अब निशी के मुह से बात नीकल गयी तो सब ने पुछा की क्या बात है? क्युकी इन् दोनो ने नही बताया था की उस के बाप तो पहले से ही इस मिशन मे जुडे हुए है।“
साजन ने तुरंत धीरे स्वर मे निशी को बोला,”अम्फे यम्फार तम्फु कम्फ्या सम्फब कम्फो बाम्फता रम्फी हम्फै?”
निशी,”सम्फोरी यम्फार, लम्फेकिन तम्फुजे वम्फहा आम्फाने मम्फे कम्फोइ प्रोम्फोब्लेम हम्फै?”
ये कोडॅवर्ड लेंग्वेज थी। और वैसे भी इतने धीरे से दोनो ने बात की थी की किसी का ध्यान नही गया था। लेकिन साजन तुरंत तैयार हो गया। और एक बात तय हो गइ की दुसरे दिन सुबह रविवार था तो स्वामी रामानंद के आश्रम मे जरुर जायेंगे।
वाचको की सुविधा के लिये उपर्युक्त निशी और साजन का सवाद हिन्दि मे ट्रान्सलेट कर देता हु।
साजन ने निशी को कहा,”अरे यार, तु क्या सब को बता रही है?” और निशी ने जवाब दिया,”सोरी यार, लेकिन तुजे वहा आने मे कोइ प्रोब्लेम है?”
ये सांकेतिक भाषा आप सोचोगे तो शायद समज मे आ भी जायेगी और नही आयी तो चिंता न करे, इस कहानी मे इस भाषा का विवरण आनेवाला है और इस क्रांति की कहानी मे ये भाषा बहुत अहम जगह पर इस्तेमाल होनेवाली है। और इस भाषा से पुलिस धोखा खानेवाली है.....कब, क्यु और कहा वो तो कौन जाने कहा???...
वैभव
09-Feb-2022 07:30 PM
Very very very very intresting story h apki 👏👏👏👏👏👏👏👏👏💐💐👏
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PHOENIX
09-Feb-2022 07:37 PM
Thank you so much. keep reading.
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🤫
09-Feb-2022 08:47 AM
हम तो समझ गए थे कोड लैंग्वेज,,, वैसे शिविर में जय तो फेमस हो गया। ये निशी और साजन की फैमिली एक दूसरे को जानती है तभी वो ऐसे बोली।देखते हैं आगे क्या होता है, अगले भाग के इंतजार में बहुत अच्छी कहानी है।💐💐💐💐💐
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PHOENIX
09-Feb-2022 11:26 AM
धन्यवाद अंजेलजी। बहुत जल्द अगला अपडेट देता हु।
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kapil sharma
08-Feb-2022 09:59 AM
सर बहुत समय मे आपके पार्ट आरहे है , पीछे का पार्ट पढ़ना पड़ा तब ये वाला पार्ट पढ़ा 🙏
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PHOENIX
08-Feb-2022 12:14 PM
iski ek hi vajah hai hinglish to hindi conversion. Hindi indic itana takleef de raha hai ki 1 page convert karane me adha ghanta nikal jaata hai fir bhe posting ke samay shabd apane aap change ho rahe hai.
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